

सच जब से पंखुरी आयी है घर में नूर आ गया है और जब वो कुछ दिन के लिये ही सही,कहीं चली जाती है तो लगता है जैसे घर से उजाला ही चला गया हो. वैसे रोज़ घर लौटने पर दरवाज़े पर बिटिया का दौड कर आ जाना दिन भर की सारी थकान एक क्षण में दूर कर देता है लेकिन उनके न रहने पर ये थकान आराम के बावजूद बनी रहती है और हर आहट पर उनकी ही याद आ जाती है.लगता है जैसे अभी ठुमुक-ठुमुक करती सामने आ खडी होगीं. सुबह-सुबह उनका मासूम कोमल स्पर्श याद आता है तो मन उदास हो जाता है. पंखुरी के कोमल स्पर्श ने सचमुच हमारे जीवन में एक रंग सा भर दिया है तभी तो अब उसके सिवा हम कुछ सोच नहीं पाते. अभी तो मन उसके बिना उदास है मगर ये तसल्ली भी है कि बस अब जल्दी ही बिटिया लौट आयेगी और घर-आँगन फिर से उसकी मासूम शरारतों और किलकारियों से गुलज़ार हो उठेगा.
माधव के बिना मेरा भी यही हाल होता है , मै आपका दुःख समझ सकता हूँ , खैर जल्द ही बिटिया आ जायेंगी और फिर सब कुछ ठीक हो जायेंगा
ReplyDeleteमृत्युंजय कुमार