हमारी नन्ही परी

हमारी नन्ही परी
पंखुरी

Sunday, August 29, 2010

पंखुरी बिना घर सूना.....!



 हमारी बच्चा रानी .., अरे मतलब ,हमारी पंखुरी बेटी आजकल अपने ननिहाल गयी हुई हैं.सारा घर अजीब-अजीब सा हो गया है.लगता है सब कुछ उदास सा हो गया है बिटिया बिना. हर चीज़ चुप सी है.मानों सबको इन्तज़ार है उनके लौटने का. घर का कोना-कोना बिटिया को शिद्दत से याद कर रहा है. उनकी भोली शरारतें,नटखट हँसी,पूरे घर में चंचल तितली की तरह उडते-फिरते रहना, सबकी आँखों का नूर बन
जगमगाते रहना, अपनी तोतली भाषा में जाने क्या-क्या बोलते रहना ,जिसे सुन कर हम सबका मन जुडा जाता है और नयी-नयी मासूम शरारतों से पूरे घर को गुलज़ार रखना

Friday, August 20, 2010

पंखुरी का शब्दकोश....!


आज बात पंखुरी के शब्दकोश की ! जैसा कि आप जानते ही हैं बिटिया रानी डेढ साल की पूरी हो चुकी हैं ! झटपट सीखने में माहिर हैं तो रोज़ ही कुछ सीखने की प्रक्रिया लगातार चल रही है. इसी क्रम में चल रहा है उनका भाषा-विकास भी और तैयार हो रहा है एक मज़ेदार शब्दकोश जो एक्सक्लूसिवली, पंखुरी बेटी का कहा जा सकता है . इसमें शामिल शब्द वो हैं , खुद पंखुरी बेटी ने बनाये हैं. आइये, आपको इसकी एक बानगी दिखायें ! ये हैं कुछ शब्द और उनके अर्थ ------------
१. अग्गा - दा , २. गागा - दवाई , ३. आऊ - खाना (कोई भी) खाद्य पदार्थ , ४. मम्मा - पानी . ५. पीपी - कोई भी गाडी (दोपहिया-चारपहिया) , ६. हड्डा - किसी भी प्रजाति का कीडा-मकोडा , ७. एन्नी - आँख , ८. भू-भू - कुत्ता , ९. मीयूँ - बिल्ली , १०. अउआ - और , ११. अतो - हटो, उठो, चलो, बढो (अवसरानुकूल, इनमें से कुछ भी) १२. गे - गये , १३. आ गे - आ गये , १४. नन्नू - तन्नू दीदीइसके साथ ही पंखुरी बेटी पापा, चाचू, बुआ, बाबा, मामी कहना सीख चुकी हैं. पापा गये, पापा आ गये. ये वाक्य भी वो अब बोल लेती हैं. इसके अलावा पंखुरी की साइन लैंग्वेज भी है , जिसकी लिस्ट बहुत लंबी है.

Friday, August 6, 2010

Pankhuri visited to Sarita Bua's place...

पंखुरी पिछले दिनों अपनी सरिता बुआ के घर उनसे मिलने गयी .उनका घर वैसे तो बहुत दूर है लेकिन क्या किया जाये .अपनों से मिलते-जुलते तो रहना ही पडता है.
तो पंखुरी पापा की बाइक पर बैठ कर वहाँ पहुँचीं.सरिता बुआ की लाइब्ररी बिटिया को बहुत पसंद आई जिसमें जाने-माने राइटर्स की  बुक्स रखीं थीं. उन्हें देख कर पंखुरी को याद आ गया कि उन्हें भी तो बडी हो कर मशहूर राइटर बनना है और ये याद आते ही बिटिया ने लगे हाथ सरिता बुआ को अपना आटोग्राफ़ दे डाला.
उस वक्त तो पंखुरी ने बिल्कुल बडे राइटर्स की तरह दिखने भी लगीं जब बुआ ने अपना चश्मा उन्हें लगा दिया.हाँलाकि वो पावर वाला चश्मा था तो लगाते ही बिटिया को एक के दो और दो के चार दिखने लगे, इसलिये उन्होंने चश्मे को आँखों से कुछ नीचे सरका दिया . फिर सब ठीक-ठाक हो गया. पंखुरी ने कुछ
देर सरिता बुआ के कम्प्यूटर पर भी हाथ आज़माया ,कुछ अभ्यास किया, फिर अचानक उन्हें रोना आ गया क्योंकि हेडफ़ोन शायद उनके कानों को दबा रहा था.  फिर हेडफ़ोन
निकाल दिया गया. कुल मिला कर पंखुरी बिटिया की ये विज़िट काफ़ी मज़ेदार रही और यादगार भी !! अब जल्दी ही वो ऐसे ही कुछ और आउटिंग का प्रोग्राम बना रही हैं..., आपको भी चलना है क्या ?

Wednesday, August 4, 2010

पंखुरी और बैलून......

पंखुरी बेटी को वैसे तो रंग-बिरंगी चीज़ें खूब पसंद हैं लेकिन शुरू-शुरू में उन्हें गुब्बारे रंग-बिरंगे होने के बावजूद कुछ खास नहीं भाये. शायद उन्होंने कोई गुब्बारा फूटते और तेज़ आवाज़ होते देख-सुन लिया था.तो पहले गुब्बारा उनके लिये डरने के चीज़ थी.लेकिन जल्दी ही ये उन्हें प्यारा लगने लगा क्योंकि इसे उन्होंने आसमान में उडते देख लिया था , जो  वाकई मज़ेदार था. फिर बिटिया को आ गया नया आइडिया... !
गुब्बारे के पंख लगा के उडने का.ये वाकई मज़ेदार और दमदार आइडिया था. तो बिटिया ने एक दिन पहले अपने लिये दो बडे वाले गुब्बारे खरीदवाये,फिर उन्हें अपने दोनो साइड में लगा लिया, पंखों जैसा...! लेकिन पता नही क्या हुआ, फ़्लाइट टेक-आफ़ ही नहीं हुई, शायद पंखों की पोज़िशन सही नही थी... !

पंखुरी के गैज़ेट्स (तीन)

 पंखुरी बेटी का अगला फ़ेवरेट गैज़ेट है - पेन..., कलम..., लेखनी... ! इससे तो बिटिया को इतना प्यार है कि मत पूछिये !इनके लेखनी प्रेम को देख कर कुछ लोगों का मानना है कि हो न हो पंखुरी बेटी बडी होकर ज़रूर बहुत मशहूर राइटर बनेंगी. खास बात ये कि अगर पेन बंद हो तो बिटिया तुरन्त जान जाती हैं और तब तक शोर मचाती रहती हैं जब तक पेन खोल कर न दिया जाय और साथ में लिखने के लिये कागज़ भी. लिखने के लिये न्यूज़ पेपर भी चलता है जिस पर वो छपी न्यूज़ को ही सही किया करती हैं. इस काम को करने में पापा के कई पेन शहीद हो चुके हैं लेकिन कोई बात नहीं ! भई... कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी तो पडता है, है कि नहीं............!पापा तो कुछ समझते ही नहीं.........!!!
देखो हँस न देना, क्योंकि बात हो रही है पंखुरी बेटी के उन फ़ेवरेट गैज़ेट्स की, जो उन्हें अपने खिलौनों से भी प्यारे हैं तो फिर बताना तो पडेगा ही न ,उन सबके बारे में ...! हाँ तो... , पंखुरी का अगला फ़ेवरेट गैज़ेट है - झाडू !!! घर की सफ़ाई के लिये काम में आने वाला ये हथियार बिटिया को बडा पसंद है. अकसर झाडू उठा कर सारे घर को साफ़ कर देने का काम उन्हें बहुत भाता है. वैसे झाडू अभी लंबाई में उनसे कुछ ऊँची ही है .

Tuesday, August 3, 2010

पंखुरी के गैज़ेट्स (दो)

अब ये बात तो सबको पता ही हो चुकी है कि पंखुरी बेटी को अपने खिलौनो से भी ज़्यादा मज़ेदार बडों की चीज़ें लगती हैं. पापा , चाचू और बुआ का मोबाइल लेकर जो नंबर डायल करने में बिटिया को सबसे ज़्यादा मज़ा आता है ,वो नंबर है- १०० ........... , ये कित्ता आसान भी तो है . है न !!!
यही हाल टीवी के रिमोट का भी है . ये पंखुरी बेटी के फ़ेवरिट सामानों में एक है. इसमें भी काफ़ी मज़ा है . बटन कुछ भी दबे , चैनल्स तो बदलेंगे ही. इसकी मदद से पंखुरी अपना फ़ेवरिट कार्टून चैनल भी ढूँढ निकालती हैं. रिमोट की सबसे अच्छी बात ये है कि जब टीवी बन्द हो तो, इसकी बैटरीज़ निकाल कर खेला जा सकता है . क्या बात है !!!
वैसे घर में कुछ और मज़ेदार और काम की चीज़ें हैं,जो पंखुरी को आकर्षित करती हैं और फिर चाहे कहीं भी छुपी हो पंखुरी उन सामानो को ढूँढ ही लेती हैं- जैसे दवाइयाँ !!! इन्हें खोला जाता है फिर फेंका जाता है. यही इनसे खेलने का तरीका है. वैसे इस खेल पर पापा की टेढी नज़र पड चुकी है और घर की सारी दवाइयाँ छुपायी जा चुकी हैं तो पंखुरी बेटी के जिम्मे कोई दूसरा ऐसा ही मज़ेदार खेल ढूँढने का काम आ गया है .