हमारी नन्ही परी

हमारी नन्ही परी
पंखुरी

Sunday, August 21, 2011

आज की ताज़ा खबर (1)

पिछले तकरीबन तीन महीनों से हमें लगातार अपने पिछड़ते जाने का अहसास हो रहा था.बेटी के सीखते-समझने और अभिव्यक्त करने की गति अब इतनी तेज़ हो गयी है कि जाने कितनी अहम बातें छूटती चली जातीं हैं और हम अपनी व्यस्तताओं के चलते मन मसोस कर रह जाते हैं. इसी लिए अब इस नए लेवल के साथ हम एक नया प्रयोग शुरू करने जा रहे हैं , लेवल है '' पंखुरी की दैनन्दिनी '' और कहने की ज़रुरत नहीं कि  इसके अंतर्गत बेटी के रोज़ की अपडेट होती रहेगी.हमारी कोशिश होगी कि जब भी कुछ ख़ास मज़ेदार हो तब थोड़ा सा ही सही इसमें ज़िक्र ज़रूर हो.बिटिया की दैनन्दिनी लेवल क्लिक कर के आप जब चाहें इन  गतिविधियों की जानकारी पा सकते हैं.


आज बेटी सुबह से ही मज़ेदार मूड में थीं .नाश्ता पानी करने के बाद फ्रेश हो कर पहले तो वो बिल्ली यानि पूसी कैट बन गयीं. जीहाँ सही समझे आप... हमारा मतलब बिल्ली से ही है. दरअसल बिटिया को एक्टिंग करने का ख़ासा शौक है. कभी लायन , कभी चिड़िया, कभी मैडम बन कर वो खुद से ही खेल ईजाद किया करती हैं तो आज बारी बिल्ली वाले खेल की थी. इसमें  पहले तो बेटी ने कैट की तरह पूरे घर में चलना शुरू किया फिर म्याऊँ  - म्याऊँ बोल कर सबको विश किया.कुछ देर बाद जब पापा ने अचानक कहा कि पंखुरी इधर आओ तो बेटी ने तुरंत संशोधन किया पंखुरी नहीं बिल्ली है. फिर थोड़ी देर बाद धोबन धुले कपडे लेकर आयी तो बेटी ने बुआ से कहा बुआ बताओ बिल्ली है  तब बुआ ने धोबन को बताया कि हमारे घर बिल्ली आई है. इस दौरान पंखुरी बेड पर से भी बिल्ली की ही तरह चढ़ती-उतरती रहीं.कई बार फिसलीं भी लेकिन रोईं नहीं क्योंकि बिल्ली रोती थोड़े ही है.


फिर जब ये खेल खत्म हो गया तो बेटी ने बुआ से कहा बुआ फ़ोटो खींचो ...बुआ ने देखा बेटी ने बुआ का चश्मा पहन रखा था ... वैसे अब पंखुरी की फ़ोटो खींच पाना एक बड़ा मुश्किल काम हो गया है लेकिन उस वक्त बेटी को खुद मूड में देख कर बुआ ने फ़टाफ़ट फ़ोटो खींच डालीं ...

आप भी देखिये............










ओए ........ये चश्मा तो उल्टा है...ही-ही-ही

Friday, August 12, 2011

पंखुरी पहुंची गाँव में !

बीती  इकतीस जुलाई को पंखुरी बेटी को एक और अच्छा मौका मिला ...एक गाँव में जाने का . गाँव भी कोई ऐसा वैसा नहीं सुविख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी का गाँव लमहीं. यहीं मुंशी जी का जन्म हुआ था और यहीं पर उन्होंने अपनी अनेक सुविख्यात रचनाएँ लिखीं. इकतीस जुलाई को मुंशी जी की जयंती के अवसर पर हर साल वहाँ ढ़ेर सारे साहित्यिक आयोजन होते  हैं . इस बार बेटी को भी  बुआ के साथ वहाँ जाने का मौका मिल गया वो भी पहली-पहली बार.

किसी  गाँव जाने का ये मौका था इसलिए  बड़ों को डर था कि वहाँ बेटी परेशान , बेहाल या बोर न हो जाए लेकिन बेटी ने तो वहाँ इतना एन्जॉय किया कि कुछ  मत पूछिए.... बस ये फ़ोटोज़ देख लीजिये....

लमहीं गाँव .........
इत्ता बला (बड़ा) .....
एक फ़ोटो हो जाए ....
थोड़ा और क्लोज़ से......
गाँव की प्राथमिक पाठशाला में ....
पोज़ देती बिटिया...
... और जाने किस बात पर खुल गयी खिल-खिल की गठरी...!
ये क्या हो रहा है..
वहाँ पंखुरी बेटी ने ये देखा ( जो आप ऊपर वाली तस्वीर में देख रहे हैं. ) बेटी ने कुछ समझा नहीं बस दूर से देखती रहीं आश्चर्य के साथ, पास जाना मना जो था. ये तो सबने बाद में बताया कि ये सबके खाने के लिए बाटी और चोखा बनाया जा रहा है.पंखुरी बिटिया तो तब भी कुछ ख़ास नहीं समझीं ...उम्मीद है आप सब समझ गए होंगे.

Wednesday, August 10, 2011

मेले में बिटिया ...!

सावन के महीने में पंखुरी बेटी के शहर यानी वाराणसी की छटा ही निराली हो जाती है ये बात तो सारी दुनिया को पता है लेकिन बेटी को तो भाता है बस मेला .... सावन का मेला.... ढेर सारे चरखी , झूले, खिलौने और गुब्बारे वाला मेला. जहां पर होता है खूब एडवेंचर,मस्ती और बेटी के  दौड़ने - भागने के लिए यहाँ से वहाँ तक जगह ही जगह...!

सावन के दूसरे सोमवार को बेटी पापा-मम्मी-बाबा और तनु दीदी के साथ मेला घूमने के लिए सारनाथ गयी. याद है न आपको पिछले साल भी बेटी वहाँ गयी थी . तब वो केवल डेढ़ साल की थी और तब वहाँ मेला भी नहीं लगा था....लेकिन हाँ उस बार की पूरी मस्ती की सारी बातें भी हमने आप सबसे शेयर की थीं.

 लेकिन अबकी तो मज़ा दुगना था. बेटी भी कुछ और समझदार हो गयी है,झूले तो थे ही साथ में कंपनी देने के लिए तनु दीदी भी थी...  

हालाँकि व्यस्तता के कारण बुआ और चाचू  के साथ  न  जाने से बेटी कुछ उदास ज़रूर थीं लेकिन मेले में पहुँच कर उनके  सलोने  मुखड़े पर मुस्कान की धूप खिल ही गयी  और फिर हुई झूम के मस्ती.ये उसी के कुछ प्यारे चुनिन्दा फ़ोटोग्राफ ख़ास आपके लिए......... 

 बाबा और तनु दीदी साथ बेटी...

वाओ ...... झूले.......!

इसी पर तो बैठना है बेटी को...

एडवेंचर.....

इत्ती ssssssssssss चिलिया ...

ज़रा ध्यान से देखा जाए ....
साथ-साथ

हुर्रररर रे..........

 घूमो-घूमो

झाड़ी में फूल :-) मतलब पंखुरी .......

सुहाना मौसम......

झूला ssssssss

चलते चलो .......

Tuesday, August 9, 2011

एक विशेष अवसर...!

जी हाँ , ये पंखुरी बेटी के लिए सचमुच बड़ा ही विशेष और उल्लेखनीय अवसर था . आप सब तो जानते ही हैं कि बेटी का शहर बनारस कला-संगीत-साहित्य-आध्यात्म का गढ़ है. बड़े-बड़े ज्ञानी गुरुजन की नगरी है. ऐसे ही एक विश्वविख्यात गुरु और महान व्यक्तित्व का नाम संगीत-जगत में बड़े आदर के साथ लिया जाता है आदरणीय पद्मविभूषण पंडित किशन महाराज
 पिछले दिनों जब बेटी की बुआ को एक आयोजन के सिलसिले में वहाँ जाना पड़ा तो बेटी साथ हो लीं और ये सुअवसर बन गया.आपके लिए कुछ चित्र....
 
 .    पद्मविभूषण पंडित किशन जी महाराज के आवास में ही स्थित उनका वह गणेश कक्ष, जिसमें भारतीय संगीत जगत की अनेकानेक हस्तियाँ आ चुकी हैं.महाराज जी का भव्य चित्र सामने ही रखा है मानों हंस कर आशीर्वाद दे रहे हों.
     .        ये रहे संगीत का आनंद ले रहे काशी के संगीत विद्वान और श्रोताजन. पता है पीछे दिख रही भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा महाराज जी ने खुद बनाई है.

    ये रही पंखुरी बेटी इतनी महत्वपूर्ण जगह पर...!

   बुआ (लाल साड़ी में) की माला बेटी के गले में....

   बुआ का मेमेंटो भी ( as usual ) बेटी  का :-)


क्यों .... ? था न एकदम ख़ास मौका... :-D

 

Thursday, August 4, 2011

पंखुरी की बातें (4)

ओहो .... एक बार फिर थोड़ी देर हो गयी. वजह वही पुरानी....,कुछ काम - कुछ व्यस्तताएं और पंखुरी बिटिया की गतिविधियों में लगातार होते इज़ाफ़े ने  अब थोड़ी सी दुविधा भी बढ़ा दी थी कि क्या पकड़ा ,क्या छोड़ा जाए ...तो कुछ गड़बड़ हो ही गयी और इसी उहापोह में पूरा एक महीना निकल गया. 
लेकिन चलो कोई बात नहीं...अब बात शुरू होगी फिर उसी जोश के साथ... और अब तो कुछ ज़्यादा ही , क्योंकि अब तो पंखुरी बेटी रोज़-रोज़ सयानी और सबकी नानी होती जा रही हैं .
... हाँ एक बात बताना तो हम भूले ही जा रहे थे कि पंखुरी Times ...! का ये वाला एपिसोड कुछ ज़्यादा ख़ास है क्योंकि ये इस ब्लॉग की  75 th  पोस्ट है... यानी Diomand  Jublee वाला...,इसी लिए तो ये सोचने में  भी देर हुई कि इसमें क्या लिखा जाए ...!
तो आखिर हमने आज कुछ ऐसी फ़ोटोज़ आप सबसे शेयर करने की सोची जिन्हें देख कर पंख लगाकर उड़ते समय का अंदाज़ होने लगता है. देखिये तो ..... हमारी नन्ही परी धीरे-धीरे कैसे बड़ी होती जा रही हैं.....

ये फ़ोटोज़ सितम्बर 2009  की हैं जब बिट्टू रानी... (अरे हमारा मतलब पंखुरी बेटी है भई. प्यार के उनके अनेक नाम हैं... ) सिर्फ आठ महीने की थीं.

चेहरे पर जुल्फें ... ये अदा तब से आज तक वैसी की वैसी !

मुंह के अन्दर मोती सी एक नन्ही दंतुली ... दिखी क्या ??

नहाके मूड फ्रेश...

Our  देसी गर्ल...

...in विदेशी इश्टाइल !!!
और ये फ़ोटोज़ जुलाई  2011  की...जब पंखुरी बेटी हो गयी हैं पूरे दो साल-आठ महीने  की.....