हमारी नन्ही परी

हमारी नन्ही परी
पंखुरी

Thursday, September 30, 2010

छई छप छई...!


बडे लोगों ने कहा है कि ज़िन्दगी में हर काम पूरे आनंद के साथ करना चाहिये और पंखुरी बेटी इस फ़लसफ़े पर पूरा अमल करती हैं और जब बात नहाने की हो तो फिर क्या कहना . हाँ अगर मूड सही न हो तो अलग बात है नही तो छ्प-छप करना (नहाना) बिटिया के लिये एक मज़ेदार खेल है. आप खुद ही देखिये-
ठंडे-ठंडे मम्मा (पानी) से नहाना चाहिये...
बाल्टी में मम्मा खत्म हो जाए तो सीधे नल के नीचे आना चाहिये . ही-ही-ही

फिर हर-हर गंगे करना चाहिये...
और फिर सीटी बजाना चाहिये. आप भी करके देखिये , खूब मज़ा आयेगा !!

Sunday, September 26, 2010

हैप्पी डाटर्स डे...!

आज की पोस्ट में नो शरारत की बातें,नो मस्ती की बातें !आज हमें अपनी सारी बेटियों को पंखुरी बिटिया की ओर से बेटी-दिवस की बधाइयाँ जो  देनी हैं. पंखुरी की ब्लोगर दोस्त पाखी दीदी , अनुष्का दीदी, पंखुरी की प्यारी तोषी दीदी , चीनू दीदी और वो सारी की सारी नन्ही परियाँ , जो अपनी निश्छल मुस्कान, भोली बातों और उम्मीद की किरण जैसी अपनी उपस्थिति से जग भर में उजियारा फैला रही हैं उन सबको पंखुरी टाइम्स की ओर से भी ढेर सारा प्यार और आभार , हमारी दुनिया को रोशन करने के लिये...! बस कुछ दिनों में ही नवरात्रि आने वाली है. हम सब शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा के नवरूप की स्थापना, आह्वान , अर्चन, पूजन,दर्शन करेंगे. आइये उससे पहले ,अपने-अपने घर में शुभदीप सी जगमगाती इन बेटियों को ढेर सारा प्यार, जीवन का सुद्रिढ आधार , इनके हिस्से का आकाश और भरपूर सम्मान देने का प्रण करें और ये विश्वास करना सीखें कि हम जिस शक्ति के प्रतीकरूप की पूजा करते हैं , ये बेटियाँ उसी शक्ति की प्राणमयी प्रतिमाएं हैं और इनका सम्मान किये बिना कोई भी शक्तिपूजा व्यर्थ है और निरर्थक भी...!

आभार सहित
संपादक
पंखुरी  TIMES

Saturday, September 25, 2010

इब्नबतूता का जूता...और मुल्ला नसीरुद्दीन की टोपी...!

 आपने देखा है क्या ? अरे बाबा, वही ...जूता और टोपी....? क्या कहा....? नहीं देखा ...! तो चलिये हम अभी आपको दिखाते हैं. वो दोनो ही चीज़ें पंखुरी बेटी के पास हैं.
ये रहे मुल्ला नसीरुद्दीन , अपनी टोपी में मुँह छिपाये...!


हैं .... ये क्या....? ये पंखुरी बिटिया ही हैं
अच्छा चलिये , कोई बात नहीं इब्नबतूता से तो मिल लेते हैं . वो , ये रहे अपने जूते (?) के साथ...!

अरे ये क्या... ? ये तो फिर पंखुरी बेटी निकली . बुआ की सैंडिल पहन कर बदमाशी करती हुई...
अच्छा...!  तो ये बात है बिटिया रानी..., हमसे ही मस्ती ...!!

Friday, September 24, 2010

पंखुरी ने मंदिरों की सैर की !

इन दिनों पंखुरी खूब घूम-फिर रहीं हैं. पिछले सन्डे की शाम को बिटिया घूमने के लिये जहाँ गयीं, वो था वाराणसी का प्रसिद्ध श्री तुलसी मानस मंदिर और अभी नया बना बहुत सुन्दर त्रिदेव मंदिर ! अब इस सैर का मज़ा तो तब तक अधूरा ही रहेगा जब तक बिटिया अपनी बातें , अपने दोस्तों यानी आप सब से न बाँट ले, तो आइए इस बार बिटिया के साथ चलते हैं , मंदिरों के शहर के इन मंदिरों की सैर पर ..
जब पंखुरी तुलसी मानस मंदिर पहुँचीं तो इतना बडा परिसर देख कर आश्चर्य में डूब गयी...
ये आश्चर्य कुछ देर बना रहा...

अँधेरे में जगमगाता मंदिर बिटिया को हैरान जो कर रहा था...


लेकिन कुछ देर बाद बिटिया के मुख पर मुस्कान आ ही गयी...
फिर वहाँ बिटिया को एक बडा सा पाण्ड दिखाई दिया और उससे कुछ और भी था.....
क्या है...? ज़रा पास से देखा जाए.....

और पास से....
अचानक बिटिया बोली हद्दा ...( वो सारे जीव-जन्तुओं को हड्डा जो कहती हैं), वो तो पापा ने बताया कि नही बेटा , ये हड्डा नहीं , फ़्रोग (मेंढक) है.  

 इसके बाद बिटिया पापा के साथ त्रिदेव मंदिर पहुँची. वहाँ रंगीन फ़ाउन्टेन को देखा.जिसे देख कर एक बार फिर उनका मुँह खुला का खुला रह गया.
ऐसा रंगीन और उछलता-कूदता-नाचता मम्मा (पानी)... !! बिटिया को यकीन नहीं आया तो फिर पास जा कर भी देखा ...
वो जगह भी बेटी की दौड-भाग के लिये एकदम मनमाफ़िक थी....
तो इसका पूरा-पूरा आनंद उन्होंने उठाया.....

Wednesday, September 22, 2010

पंखुरी सारनाथ में... ! (एपिसोड-दो)


हाँ तो पिछ्ले एपिसोड में बात हो रही थी पंखुरी बेटी की सारनाथ यात्रा की और सवाल था कि पापा ने बेटी को बोटिंग कराई या नहीं तो भई इसका जवाब तो....वो क्या कहते हैं , हाँ ..., वेरी सिम्पल है.भला बेटी की इच्छा हो और पूरी न की जाए ऐसा कैसे हो सकता है ? तो पंखुरी ने बोटिंग तो की ही और भी ढेर सारी मस्ती की . आईये देखते हैं इसकी फ़ोटो रिपोर्टिंग - 
बेटी जब बोट पर बैठी तो बहुत हैरान हुई. मम्मा (पानी) दूर से तो देखा था, लेकिन खुद मम्मा के बीच होने का ये पहला अनुभव जो था.





कुछ टेंशन तो बेटी के चेहरे पर आप भी देख सकते हैं...

ये हैरत तो पंखुरी के मन में बनी ही रही कि आखिर पैरों तले ज़मीन कैसे हिल रही है ? आप भी नहीं समझे ?  ओहो...,बिटिया बोट पर जो खडी थी.


बोट के बाद पंखुरी गोल-गोल झूले पर भी झूली..., मज़ा आ गया !
फिर आई पी (गाडी) की बारी... !

कोई नही था, तो बेटी ने अकेले ही पी पर खूब आनंद लिया !
वहाँ इतना स्पेस था .बिटिया तो भागते-भागते नही थक रही थी !
और ये बेल.... , बाबा रे इत्ती बडी..., बिटिया से भी..., तो ये सोचना लाज़िम ही था कि इसे बजाया कैसे जाए ???
यहाँ भी बिटिया सोच में पड गयी कि हाथ तो पहुँच नही रहा..., अब निन्ना (जै) करे तो कैसे ?
इतना कुछ करने के बाद बिटिया की फ़रमाइश पर पापा ने उन्हें एम्मी (आइसक्रीम) खिलाई जो पंखुरी की मोस्ट फ़ेवरेट चीज़ है.
आपको तो पता ही होगा कि सारनाथ ही वो पवित्र स्थान है , जहाँ भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था. अब बिटिया तो इतनी बडी बात अभी नही समझती ....
लेकिन यहाँ आकर जितना खुश वो हुई उससे ये तय है कि बेटी के बाल- मानस पटल पर धुँधली ही सही (क्योंकि वो अभी केवल एक साल नौ महीने की हैं), हमेशा के लिये ये यात्रा अंकित हो गयी है.

Tuesday, September 21, 2010

पंखुरी सारनाथ घूमने गयी !


आपको तो पता ही होगा. वाराणसी के प्रसिद्ध स्थानों में से एक सारनाथ भी है.पंखुरी बेटी को नहीं पता था. वो तो उसे पता चला जब वो पापा-मम्मी के साथ सारनाथ पहुँची. वहाँ पहुँच कर बिटिया ने इतना मज़ा किया कि पूछिये मत ! वहाँ कि इत्ती सारी बातें हैं कि एक बार में बताई नहीं जा सकतीं . तो बिटिया ने सोचा कि वो सारी बातें अपने दोस्तों से क्यों न एपिसोड बना कर बताई जाएं ,तो लीजिये पेश है पहला एपिसोड -
घुसते ही बिटिया हैरान हो गयी, ओह इत्ता लंबा रास्ता...,क्यों न कुछ दूर चल कर आराम कर लिया जाए...!फिर आगे चिडियाघर भी तो जाना था .
ये क्या ..., इत्ती बडी चूं-चूं (चिडिया)
पापा ने बताया कि ये बगुले और बत्तख हैं . वाओ कित्ते मज़ेदार...
फिर मम्मी की गोद में चढ कर पंखुरी ने रैबिट्स भी देखे.
फिर अचानक बिटिया को दिखाई पडा एक बडा सा पाण्ड, जिसमें भरा था खूब सारा मम्मा...(पानी)!वो तो फिर से हैरान हो गयी...
 

Monday, September 20, 2010

ये मोबाइल मुझे दे दो ---!

पंखुरी बेटी अभी खुद पौने दो साल की हैं लेकिन उनके लिये एक दिन से दस साल तक के सारे बच्चे बाबू होते हैं.यहाँ तक कि अगर अपनी भी तस्वीर देख लें तो कहती हैं - बाबू ए (बाबू है).ऐसे में जब पडोस में रहने वाला एक साल का प्रथम उनके घर आया तो बाबू को देख कर पंखुरी खूब खुश हो गयीं.
लेकिन जल्दी ही ये खुशी हाथापाई में बदल गयी.पहले तो किसी की समझ में आया ही नही कि हुआ क्या,लेकिन कुछ ही पलों में माज़रा सामने आ गया. आप भी   देखिये क्या हुआ ?     
ओहो..., तो ये बात है.प्रथम ने पंखुरी की बुआ का मोबाइल ले लिया. अब भई , बिटिया को तो गुस्सा आना ही था इस बात पर , तो शुरू हो गयी छीना-झपटी . आगे देखिये कौन जीतता है ?
जंग अभी जारी है. कभी पलडा इधर, कभी उधर...! वैसे तो पंखुरी आठ महीने बडी हैं प्रथम से, लेकिन टक्कर बराबरी की है. प्रथम हैं कि फ़ोन छोड ही नहीं रहे और पंखुरी ,उन्हें तो किसी भी कीमत पर फ़ोन की हिफ़ाज़त करनी है.
और लीजिये जनाब.., हो गया फ़ैसला.आखिरकार हमारी बिटिया ने जंग जीत ही ली . देखिये तो, बुआ का मोबाइल वापस लेकर कितना इत्मिनान है बेटी  के चेहरे पर. वेलडन पंखुरी..., कीप इट अप !!!

Friday, September 17, 2010

Photo Feature - Pankhuri in different moods...!

टोपी के पीछे कौन है ? बताओ तो जाने.....!
टोपी के पीछे पंखुरी है भई... और कौन !
ये हो रही है रोटी बेलने की प्रेक्टिस ...
क्या कहा ? रोटी है ही नही..., अरे बाबा मन की आँखों से तो देखो !
ओह... , रोटी की डिज़ाइन बिगड गयी...
चलो बिटिया का मन बहलाने के और भी कई रास्ते हैं.