हमारी नन्ही परी

हमारी नन्ही परी
पंखुरी

Friday, May 27, 2011

इए मेल्ला...

कुछ समझे इसका मतलब.....? इसका मतलब है '' ये मेरा है '' . जीहाँ , पंखुरी बेटी को अब अपनी चीजें पहचानना और उन पर दावा करना आ गया है...और इस मेरा है के दायरे में सिर्फ वो चीजें ही नहीं आतीं जो उनकी हों या उनके इस्तेमाल की हों ....बल्कि वो चीजें भी आतीं हैं जो उन्हें पसंद हों...फिर चाहे वो किसी की भी हों............! चाचू का चश्मा , पापा का पेन-डायरी , बुआ का मोबाईल , बाबा का बैग, पापा का पेन-डायरी  या फिर मम्मी की लिपस्टिक .... जो पसंद आ गया वो पंखुरी का है....
...और यह दावा महज दावा नहीं एक अकाट्य सच्चाई भी है !
इस अधिकार भाव का क्षेत्र असीम-अनंत है, देखिये एक मज़ेदार बानगी.....



ये मेमेन्टो बुआ को बौद्ध महोत्सव में मिला है, थोड़ा भारी है....
लेकिन पंखुरी का है....बेटी का पोज़ तो देखिये !
ये बुके और रुद्राक्ष की माला भी बुआ को एक प्रोग्राम में मिली है....
लेकिन  पंखुरी बेटी की यूनिक स्माइल देख कर आप समझ गए होंगे कि ये भी पंखुरी  की है....
 लेकिन बुआ को कोई फर्क नहीं पड़ता ...क्योंकि पंखुरी तो बुआ की है ....है न :-) !!!
 

पंखुरी की बातें (2)

पंखुरी बेटी के बातों को अक्षरशः लिख सकना संभव नहीं.कभी -कभी तो स्थिति गूंगे के गुड़ जैसी हो जाती है ... यानी सुख और आनंद तो मिलता है लेकिन कहा नहीं जा सकता . फिर भी प्रयास तो है  कि  हम बेटी की तोतली, मीठी, प्यारी बातों का रस आप तक पहुंचा सकें और इन्हें अपने शब्दों में सहेज कर भी रख सकें...तो ये है उनकी बातों की अगली किश्त !
 बेटी घर के सारे सामानों को पहचानती हैं. बाहर वाले तो दूर घर में भी कोई एक ...दूसरे का सामान छू नहीं सकता...बेटी को ये बात एकदम पसंद नहीं. अगर पापा ने चाचू का चश्मा ले लिया तो बिटिया शोर मचाएंगी 
पापा नाईं......तश्मा तातूऽऽऽऽऽऽऽ
(पापा नहीं लीजिये , चश्मा चाचू का है.)
बाबा की स्कूटर है पुरानी , मगर वो उसी पर चलते हैं. अगर बेटी के सामने कोई उस पर बैठे , जब वो स्टैन्ड पर हो, तो बेटी तुरन्त कहेंगी - 
बाबा बी नाईंऽऽऽ! तूऽऽऽत !
(बाबा की स्कूटर पर मत बैठो टूट जाएगी.)
एक बात से तो कोई इन्कार नहीं कर पाता कि पंखुरी बेटी का सेंस आफ़ ह्यूमर गज़ब का है. मज़ाक करने और मज़ाक समझने की क्षमता इतनी नन्हीं सी ही उम्र में ऐसी है कि देखने वाला हैरान हो जाए. कोई भी शरारत हो या मज़ाकिया घटना... बेटी की खिलखिलाहट देखते ही बनती है .उन्हें पता होता है कि कौन सी बात मज़ाक में लेनी है और कौन सीरियसली...!
पंखुरी बेटी थोड़ा सा रूठ कर या यूं ही हमें चिढ़ाने के लिए कहतीं हैं -
बुआ दंदी...अत्ती नाईंऽऽऽ (बुआ गंदी है अच्छी नहीं...)
 अब ऐसी बात सुन कर हमारा रूठना तो स्वाभाविक है सो हम रूठ जाते हैं और रोने लगते हैं और ऐसा होते ही बिटिया दौड़ कर हमारे पास आतीं हैं और हमें एक मीठी सी किस दे कर हँसते हुए कहती हैं - 
बुआ अऽऽऽत्तीऽऽऽऽ ....पुल्ली अत्तीऽऽऽ (बुआ अच्छी हैं पूरी अच्छी.)

Friday, May 6, 2011

पंखुरी की बातें

पंखुरी बेटी बड़ी हो रही  है  और उसका कम्यूनिकेशन  स्किल भी बढ़ता जा रहा है.समृद्ध हो रहा है शब्द -कोष ...और स्पष्ट हो रहे हैं वाक्य और सम्प्रेषण ...! ये वाकई बहुत सुन्दर अनुभव है जिससे इस वक्त गुज़र रहे हैं हम सब...उसके अपने...!
 बात तो बेटी हमेशा ही करती रही है...याद नहीं आता कभी ऐसा हुआ हो कि उसने हमारा कहा न समझा हो ,या फिर हमें अपनी बात न समझा पाई हो. ऐसा कभी हुआ ही नहीं. 
हम हमेशा संवाद करते रहे हैं उसके साथ.माध्यम चाहे शब्द हों या इशारे यानी  संकेत ...!
लेकिन अब तो बेटी बाकायदा बातें करने लगीं है ...
आज की पोस्ट में बेटी के साथ होने के ऐसे ही दृश्यों की बानगी ...

दृश्य - एक




सुबह पंखुरी सो कर उठीं . सब ऑफिस जाने के लिए तैयार हो चुके हैं . ऐसे में बुआ और बेटी की बातचीत ...

गुड मॉनिंग शोना... उठ गयी क्या बेटी ?
(सर हिला कर हाँ का संकेत फिर हाथ उठा कर...)
दूदी (गोदी)
बुआ ऑफिस जा रही है ...टाटा-बाए-बाए कर दो बुआ को...
(सर हिला कर नहीं का संकेत)
क्यों ...?
अब्बी नाईं...बुआ औपिच अब्बी नाईं ...!
(बुआ , ऑफिस अभी नहीं जाओ)
जाना पड़ेगा बेटा, ऑफिस के लिए लेट हो रही है न ...
अब्बी नाईं ...अब्बी बुआ बैत...! 
(अभी नहीं जाओ... बुआ अभी बैठो)
ओके , बुआ अभी जाकर अभी तुरंत लौटती है. बताओ क्या चाहिए.बेटी लिए क्या लाना है .
(अनमने ढंग से ) तौपी...अंदा...पूती...तौकेत...(टॉफी,अंडा,फ्रूटी,चॉकलेट)
और फिर 
बाए-बाए,ता-ता,तीऊ (बाय-बाय,टा-टा,सी यू)


दृश्य - दो 



पापा रात में घर पहुँचे और बेटी ने कुछ देर पहले हुई घटना का विवरण दिया...

पापा...अन्दा गिल (पापा अण्डा गिर गया)
अरे अण्डा  कैसे गिर गया बेटा ?
अन्दा धलाम...(अण्डा धडाम से गिर गया)
किसने गिराया ?
बाबू...(पंखुरी ने)
बाबू ने अण्डा कहाँ गिराया ?
अबयै कुकान...बाबा...बाबू अन्दा गिल...(पंखुरी अभय की दुकान से बाबा के साथ अण्डा ला रही थी, जो गिर गया.)
ओहो , फिर क्या हुआ ?
अन्दा तूत...(अण्डा टूट गया)
फिर टूट कर अण्डे से क्या निकला...चिडिया या चूज़ा...?
(ये सवाल कुछ जटिल था बेटी ने कुछ सोच कर जवाब दिया) 
अन्दा....!(अण्डा से अण्डा निकला)


दृश्य - दो 


चाचा आफ़िस से रात में घर पहुँचे और बेटी ने कुछ देर पहले  का अनुभव शेयर किया...

तातू बम ब्लाम.(चाचू बम भडाम से फटा)
अच्छा...फिर...
बाबू दलऽऽऽ (पंखुरी डर गयी)
पंखुरी ने डर के क्या किया ?
बाबू लोऊ-लोऊ (पंखुरी रोने लगी) !!!
और ये सारा विवरण पूरे एक्शन के साथ दिया गया.

Tuesday, May 3, 2011

समझदार हो रही है बिटिया...

इस बार बेटी के बहाने कुछ हमारे मन की बातें....

इस ब्लॉग का असली रंग है  हमारी पंखुरी बेटी की मासूम बातें , भोली शरारतें , नटखट अदाएं और उनकी तोतली भाषा में की गयीं वो सारी प्यारी बातें जो वो हमसे करती हैं . इस ब्लॉग का उद्देश्य है इन सारी अनमोल अनुभूतियों को उकेर देना... 
लेकिन ईमानदारी से कहूं ऐसा शब्दशः हो नहीं पाता. विशेषकर ज्यों-ज्यों पंखुरी बड़ी हो रहीं हैं उनके रंग समेटने के लिए मानों हमारी लेखनी की  सामर्थ्य छोटी होती जा रही है. जब तक उनके साथ रहो...हर पल में इतना कुछ होता है कि समझना मुश्किल है कि क्या लिखें ,क्या छोड़ दें . 



बेटी के बड़े और समझदार होने की प्रक्रिया में कितने ही खूबसूरत पल आते हैं जो जाने कितना कुछ सिखा भी जाते हैं . कभी-कभी पंखुरी के समझदार होने की ये प्रक्रिया मन में टीस भी पैदा करती है.अब हम उसको सिखा रहे हैं - अग्गा नहीं दाल...मम्म नहीं पानी ...ओई नहीं चिड़िया...नूनू नहीं मोज़े...एम्मी नहीं आइसक्रीम...निन्ना नहीं मंदिर...(ये सब शब्द भी बेटी का ही अविष्कार हैं)
 अगले साल से स्कूल जाने की तैयारी का पहला चरण है ये...और कमाल पंखुरी बेटी की ग्राह्य क्षमता का......... कि एक बार बताई बात उन्हें तुरंत याद हो जाती है. 


...लेकिन उनके सब सही-सही सिखाते जाने की प्रक्रिया कहीं चुभती सी है. महसूस होता है कि धीरे-धीरे बेटी सब कुछ शुद्ध बोलना सीख लेगी.सब समझने लगेगी.अच्छे-बुरे ,सही-गलत ,नहीं-हाँ के बीच के भेद को जान लेगी.  मासूमियत , भोलापन और नटखट शरारतें धीरे-धीरे  समझदारी, दुनियादारी,  परफेक्शन और परिपक्वता में तब्दील हो जाएँगी ...(जैसा हम चाहते  भी हैं) और फिर ये मासूम बचपन एक अनमोल धरोहर सा बस हमारी स्मृतियों में संचित हो जायेगा.
सबके बड़े होने की प्रक्रिया तो यही होती है. हमारी भी यही रही होगी ...ये सोच कर मन इस अजब एहसास की टीस से छुटकारा पाने की कोशिश करता है.
सच इंसान को बड़ा और समझदार होने की कीमत कितनी अमूल्य  चीज़ देकर चुकानी पड़ती है...पंखुरी  से ही अनजाने में ये बात भी जानी-सीखी है हमने. 



हाँ सचमुच बहुत तकलीफदेह एहसास है बचपन का खो जाना...और बहुत मुश्किल है - बड़े होते जाने और दुनियादार बनते जाने की सख्त प्रक्रिया के बीच अपने बचपन और मन के किसी कोने में दुबके भोलेपन-मासूमियत को बचाए रखना ...
जाने कैसे...लेकिन हम तो कर पाए हैं ऐसा ...
जो कुछ छूटने लगा था वो पंखुरी से मिल कर फिर वापस आ गया है...


ऐसे में जब समय को रोक पाना न तो संभव है... न ही उचित...
ईश्वर से पंखुरी बेटी के लिए, उसकी बुआ यानी मेरी  यही प्रार्थना है कि...
चाहे वक्त कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाए ...समझदारी कितनी भी धारदार क्यों न हो जाए ....
हमारी पंखुरी बेटी की मासूमियत, 
दिलकश मुस्कान,
 निश्छल झरने सी खिलखिलाहट ,
 संवेदनशीलता,
 कोमलता 
और सबको अपने स्नेहमय पाश में बाँध लेने की जादुई सामर्थ्य हमेशा-हमेशा ऐसी ही बनी रहे.
उसकी अच्छाई-सच्चाई और निश्छलता को किसी की नज़र न लगे.

आमीन...
   

Monday, May 2, 2011

एक शाम गंगा के किनारे ....

पंखुरी बेटी के शहर की वैसे बहुत सारी विशेषताएँ हैं . विश्वविख्यात शहर बनारस जो ठहरा....लेकिन बिटिया को इनमें से सबसे ज्यादा पसंद है  माँ गंगा की धारा और किनारा यानी घाट...वैसे तो पंखुरी के घर एकदम पास ही गंगा घाट है जहाँ बेटी अक्सर ही जाया करती हैं लेकिन इस बार बेटी रविवार की शाम बनारस के प्राचीन घाट दशाश्वमेघ  घाट पर घूमने गयीं और खूब अच्छा लगा उन्हें . इस मज़ेदार और यादगार आउटिंग की फ़ोटोज़ ...ख़ास आप सबके लिए...
कितना सुंदर...


पापा ने बेटी को पानी में ध्यान से देखने को कहा...बेटी ने देखा और ये क्या...पानी में तो मछली थी...

...फिर तो बेटी ने पानी में छप-छप किया और गुनगुनाने लगीं......मछली जल की रानी है...


...हैरत भरे मासूम सवाल पूछती बिटिया

...और सही सटीक जवाब सोचते पापा

...बेटी के मन में हमेशा की तरह बस एक ही सवाल था

...आश्चर्य से भरा हुआ

...“ पूलाऽऽऽ मऽऽम्म ” (इतना-पूरा- पानीऽऽऽ)

...सब तरफ़

...यहाँ से वहाँ तक पानी ही पानी

ह्म्म्म , अगली बार बोटिंग भी करनी है .