जीहाँ ....पंखुरी बिटिया की बातों के फूल अब सारे घर को हर घड़ी महकते रहते हैं....और बातें क्या....बातों की लड़ियाँ...बातों की फूलझड़ियां कहीं जाए तो बात बने...! सुबह से रात तक बस बात ही बात ...!
अभी बस कल की ही बात है , कुछ महीने पहले तक बिटिया की तोतली ज़ुबान समझने में हमें काफी अक्ल लगनी पड़ती थी लेकिन पिछले तक़रीबन दो महीने से पंखुरी बेटी चैटर बॉक्स हो गयी हैं और बेहद समझदार भी...!
सुबह बाबा , पापा,चाचू , और बुआ के ऑफिस निकलने का वक्त और बेटी का सवाल - '' मेले लिए का लाओगे ?''
फिर खुद ही जवाब भी - '' तोपी लाना ...'' फिर हिदायत...- '' दल्दी (जल्दी) आना....'' इतना ही नहीं शाम को सबके लौटने पर उनका पहला सवाल - '' मेले लिए का लाए हो ''
एक शाम बुआ ने कहा - ''पंखुरी एक गाना तो सुनाओ...''
बेटी बोली - '' हमको नहीं आता है...बुआ को आता है...बाबू (पंखुरी) छोता है...''
एक रात सब खाना खाने बैठे थे .....पापा की थाली आने में थोड़ी देर थी , पंखुरी ने चिंता से पूछा - '' मेले पापा का खाना काँ (कहाँ) है ? फिर पापा का खाना आने पर ही खुद खाना शुरू किया.
अभी कुछ दिन पहले बेटी के चाचू को पैर में चोट लग गयी .
बेटी चिंता भरे स्वर में सबको बतातीं रहीं - '' चाचू को छोत लग गयी है.बाइक छे गिल गए.'' कोई पूछता कि अब पंखुरी चाचू साथ घूमने कैसे जाएगी तो वो कहतीं - '' थीक हो जायेगा ''
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