हमारी नन्ही परी

हमारी नन्ही परी
पंखुरी

Friday, August 12, 2011

पंखुरी पहुंची गाँव में !

बीती  इकतीस जुलाई को पंखुरी बेटी को एक और अच्छा मौका मिला ...एक गाँव में जाने का . गाँव भी कोई ऐसा वैसा नहीं सुविख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी का गाँव लमहीं. यहीं मुंशी जी का जन्म हुआ था और यहीं पर उन्होंने अपनी अनेक सुविख्यात रचनाएँ लिखीं. इकतीस जुलाई को मुंशी जी की जयंती के अवसर पर हर साल वहाँ ढ़ेर सारे साहित्यिक आयोजन होते  हैं . इस बार बेटी को भी  बुआ के साथ वहाँ जाने का मौका मिल गया वो भी पहली-पहली बार.

किसी  गाँव जाने का ये मौका था इसलिए  बड़ों को डर था कि वहाँ बेटी परेशान , बेहाल या बोर न हो जाए लेकिन बेटी ने तो वहाँ इतना एन्जॉय किया कि कुछ  मत पूछिए.... बस ये फ़ोटोज़ देख लीजिये....

लमहीं गाँव .........
इत्ता बला (बड़ा) .....
एक फ़ोटो हो जाए ....
थोड़ा और क्लोज़ से......
गाँव की प्राथमिक पाठशाला में ....
पोज़ देती बिटिया...
... और जाने किस बात पर खुल गयी खिल-खिल की गठरी...!
ये क्या हो रहा है..
वहाँ पंखुरी बेटी ने ये देखा ( जो आप ऊपर वाली तस्वीर में देख रहे हैं. ) बेटी ने कुछ समझा नहीं बस दूर से देखती रहीं आश्चर्य के साथ, पास जाना मना जो था. ये तो सबने बाद में बताया कि ये सबके खाने के लिए बाटी और चोखा बनाया जा रहा है.पंखुरी बिटिया तो तब भी कुछ ख़ास नहीं समझीं ...उम्मीद है आप सब समझ गए होंगे.

1 comment:

  1. अरे.... बहुत बढ़िया ट्रिप पर हो......

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