हमारी नन्ही परी

हमारी नन्ही परी
पंखुरी

Friday, May 27, 2011

पंखुरी की बातें (2)

पंखुरी बेटी के बातों को अक्षरशः लिख सकना संभव नहीं.कभी -कभी तो स्थिति गूंगे के गुड़ जैसी हो जाती है ... यानी सुख और आनंद तो मिलता है लेकिन कहा नहीं जा सकता . फिर भी प्रयास तो है  कि  हम बेटी की तोतली, मीठी, प्यारी बातों का रस आप तक पहुंचा सकें और इन्हें अपने शब्दों में सहेज कर भी रख सकें...तो ये है उनकी बातों की अगली किश्त !
 बेटी घर के सारे सामानों को पहचानती हैं. बाहर वाले तो दूर घर में भी कोई एक ...दूसरे का सामान छू नहीं सकता...बेटी को ये बात एकदम पसंद नहीं. अगर पापा ने चाचू का चश्मा ले लिया तो बिटिया शोर मचाएंगी 
पापा नाईं......तश्मा तातूऽऽऽऽऽऽऽ
(पापा नहीं लीजिये , चश्मा चाचू का है.)
बाबा की स्कूटर है पुरानी , मगर वो उसी पर चलते हैं. अगर बेटी के सामने कोई उस पर बैठे , जब वो स्टैन्ड पर हो, तो बेटी तुरन्त कहेंगी - 
बाबा बी नाईंऽऽऽ! तूऽऽऽत !
(बाबा की स्कूटर पर मत बैठो टूट जाएगी.)
एक बात से तो कोई इन्कार नहीं कर पाता कि पंखुरी बेटी का सेंस आफ़ ह्यूमर गज़ब का है. मज़ाक करने और मज़ाक समझने की क्षमता इतनी नन्हीं सी ही उम्र में ऐसी है कि देखने वाला हैरान हो जाए. कोई भी शरारत हो या मज़ाकिया घटना... बेटी की खिलखिलाहट देखते ही बनती है .उन्हें पता होता है कि कौन सी बात मज़ाक में लेनी है और कौन सीरियसली...!
पंखुरी बेटी थोड़ा सा रूठ कर या यूं ही हमें चिढ़ाने के लिए कहतीं हैं -
बुआ दंदी...अत्ती नाईंऽऽऽ (बुआ गंदी है अच्छी नहीं...)
 अब ऐसी बात सुन कर हमारा रूठना तो स्वाभाविक है सो हम रूठ जाते हैं और रोने लगते हैं और ऐसा होते ही बिटिया दौड़ कर हमारे पास आतीं हैं और हमें एक मीठी सी किस दे कर हँसते हुए कहती हैं - 
बुआ अऽऽऽत्तीऽऽऽऽ ....पुल्ली अत्तीऽऽऽ (बुआ अच्छी हैं पूरी अच्छी.)

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