अष्टमी और नवमी के बाद सारे देश ने धूम-धाम से दशहरे का त्योहार मनाया. पंखुरी भी सबके साथ थी. दशमी के दिन का प्रोग्राम पहले से फ़िक्स था और बेटी को सपरिवार मेला घूमने जाना था. घर से निकल कर पंखुरी पहले गंगाघाट पर पहुँची.वहाँ एक देवी मंदिर का दर्शन करने लेकिन वो बंद था फिर बिटिया पापा-बाबा-चाचू-बुआ सबके साथ मेला देखने बनारस के प्रसिद्ध डीज़ल रेलवे कारखाना (DLW) के विशाल ग्राउण्ड में गयी, जहाँ रावण,कुम्भकर्ण और मेघनाद के खूब बडे पुतले देखे. वहाँ पूरी रामलीला चल रही थी. शाम ढलने पर वहाँ खूब सुंदर आतिशबाज़ी हुई फिर रावण दहन हुआ.
वैसे तो बाकी सब ठीक ही था लेकिन थोडा घपला हो गया..., वो ये कि पंखुरी बेटी आतिशबाज़ी और रावण दहन होने पर काफ़ी डर गयी. आखिर, हैं तो नन्ही बच्ची ही न......., जब तेज़ आवाज़ के साथ आतिशबाज़ियाँ छूटने लगीं तो शायद उन्हें लगा कि पता नहीं क्या माज़रा हो गया है.तो वो बजाय आसमान में देखने के, चाचू से चिपकी रहीं..., चलिये, देखते हैं इस पूरे माज़रे की फ़ोटोरिपोर्ट----
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पहला पडाव- ये देवी मंदिर |
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ओह... यहाँ तो गेट बंद है, अब ... ? |
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खोलने की कोशिश की जाए ; |
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नहीं खुला..... |
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बाहर से ही निन्ना कर लेते हैं (बिटिया के शब्दकोश में निन्ना का मतलब है - दर्शन,पूजन और मंदिर, अवसरानुकूल इनमें से कुछ भी) |
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फिर बेटी सबके साथ दशहरे के मेले में पहुँची. आप चाचू की गोद में बेटी को और उन दोनो के पीछे रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतलों को देख रहे होंगे... |
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शाम ढलने पर चारों ओर तेज़ रोशनी ने बेटी को अचम्भित कर दिया... |
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और उनका मुँह ... खुला का खुला ! as usual. |
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इसके बाद जैसे ही आसमान पर ज़ोरदार आतिशबाज़ी शुरू हुई, बेटी डर कर चाचू से चिपक गयी |
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देखिये तो कितनी मासूम लग रही है हमारी बेटी... |
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कुछ देर बाद बेटी को ज़्यादा डरते देख पापा ने गोद में लेकर समझाया कि डरने की कोई बात नहीं, हम सब हैं न... |
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पंखुरी ने पापा की बात कुछ-कुछ समझी और फिर चाचू के कंधे पर बैठ कर मेले का आनंद लिया, मगर कुछ डरते-डरते.... |
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फिर एकदम शाम ढलने पर परंपरा के अनुसार रावण दहन होना भी देखा. |