हमारी नन्ही परी

हमारी नन्ही परी
पंखुरी

Tuesday, October 26, 2010

New launch of pankhuri's dictionary

पंखुरी टाइम्स का एक अंक पंखुरी बेटी के शब्दकोष के बारे में था, आपने ज़रूर पढा होगा.बिटिया के विकास क्रम में शब्द बोलना सीखने और खुद नये शब्द गढने की प्रक्रिया रोज़ चल रही है. हम उन्हें बोलना सिखाते हैं और जो नये शब्द वो बनाती हैं , उन्हें सीख भी जाते हैं.आखिर कम्यूनिकेशन गैप नहीं होना चाहिये... है न....! दिसंबर की बीस तारीख को पंखुरी दो साल की हो जायेंगी. इस दौरान वो जो कुछ भी सीख रही हैं वो किसी और के लिये न सही हमारे लिये तो कीमती है ही और बडे होने पर बेटी के लिये भी यादगार होगा. यही सोचकर हमने एक योजना बनाई. पंखुरी की डिक्शनरी तैयार करने की . फिर योजना को मूर्त रूप देते हुए डिक्शनरी तैयार भी कर दी और अब अवसर है उसे आप सब पंखुरी के अपनों से उसे बाँटने का , क्योंकि बिना आप सबसे शेयर किये बिना तो बिटिया की हर बात अधूरी ही है न . 
तो लीजिये आप भी देखिये पंखुरी की डिक्शनरी और उसमें संकलित शब्द और बताइयेगा ज़रूर कि आपको ये कैसी लगी ? डा० रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ (उच्चारण) अंकल चाहें तो इनमें से कुछ शब्दों का उच्चारण सही कर सकते हैं, आखिर तो बिटिया अभी सीख ही रही है न-


Thursday, October 21, 2010

दशमी पर मेले की धूम...

अष्टमी और नवमी के बाद सारे देश ने धूम-धाम से दशहरे का त्योहार मनाया. पंखुरी भी सबके साथ थी. दशमी के दिन का प्रोग्राम पहले से फ़िक्स था और बेटी को सपरिवार मेला घूमने जाना था. घर से निकल कर पंखुरी पहले गंगाघाट पर पहुँची.वहाँ एक देवी मंदिर का दर्शन करने  लेकिन वो बंद था फिर बिटिया पापा-बाबा-चाचू-बुआ सबके साथ मेला देखने बनारस के प्रसिद्ध डीज़ल रेलवे कारखाना (DLW) के विशाल ग्राउण्ड में गयी, जहाँ रावण,कुम्भकर्ण और मेघनाद के खूब बडे पुतले देखे. वहाँ पूरी रामलीला चल रही थी. शाम ढलने पर वहाँ खूब सुंदर आतिशबाज़ी हुई फिर  रावण दहन हुआ.
वैसे तो बाकी सब ठीक ही था लेकिन थोडा घपला हो गया..., वो ये कि पंखुरी बेटी आतिशबाज़ी और रावण दहन होने पर काफ़ी डर गयी. आखिर, हैं तो नन्ही बच्ची ही न......., जब तेज़ आवाज़ के साथ आतिशबाज़ियाँ छूटने लगीं तो शायद उन्हें लगा कि पता नहीं क्या माज़रा हो गया है.तो वो बजाय आसमान में देखने के, चाचू से चिपकी रहीं..., चलिये, देखते हैं इस पूरे माज़रे की फ़ोटोरिपोर्ट----
पहला पडाव- ये देवी मंदिर
ओह... यहाँ तो गेट बंद है, अब ... ?
खोलने की कोशिश की जाए ;
नहीं खुला.....
बाहर से ही निन्ना  कर लेते हैं (बिटिया के शब्दकोश में निन्ना का मतलब है - दर्शन,पूजन और मंदिर, अवसरानुकूल इनमें से कुछ भी)


फिर बेटी सबके साथ दशहरे के मेले में पहुँची. आप चाचू की गोद में बेटी को और उन दोनो के पीछे रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतलों को देख रहे होंगे...

शाम ढलने पर चारों ओर तेज़ रोशनी ने बेटी को अचम्भित कर दिया...
और उनका मुँह ... खुला का खुला ! as usual.
इसके बाद जैसे ही आसमान पर ज़ोरदार आतिशबाज़ी शुरू हुई, बेटी डर कर चाचू से चिपक गयी
देखिये तो कितनी मासूम लग रही है हमारी बेटी...
कुछ देर बाद बेटी को ज़्यादा डरते देख पापा ने गोद में लेकर समझाया कि डरने की कोई बात नहीं, हम सब हैं न...
पंखुरी ने पापा की बात कुछ-कुछ समझी और फिर चाचू के कंधे पर बैठ कर मेले का आनंद लिया, मगर कुछ डरते-डरते....
फिर एकदम शाम ढलने पर परंपरा के अनुसार रावण दहन होना भी देखा.

Wednesday, October 20, 2010

नवमी पर कुमारीपूजन !


जयपुर का घाघरा... है न चोखा...!
अरे वाह..., नन्ही सी चुन्नी भी है..!
पिछली बार की पोस्ट में हमने अष्टमी पर पंखुरी के देवीदर्शन वाली बातें आपसे शेयर की थीं. अब बातें नवमी की. नवमी के दिन पंखुरी को सुबह से ही न्यौते मिलने लगे.वैसे तो पंखुरी पहले से ही दोस्तो और आस-पास के लोग के बीच सेलेब्रिटी हैं. लेकिन उस दिन की बात ही कुछ और थी. उस दिन बिटिया के कुछ दोस्तो के घर कुमारी पूजन और कन्याभोज का आयोजन किया गया था और उसमें सबसे छोटी होने की वजह से बिटिया को एज़ चीफ़ गेस्ट आमंत्रित किया गया था तो सुबह-सुबह ही बुआ ने नहला धुला कर बेटी को तैयार कर दिया.उस दिन पंखुरी ने स्पेशली इसी ओकेज़न के लिये आया सितारों और शीशे जडा वो लहँगा पहना वो जो बिटिया की बुआ उनके लिये जयपुर से लाईं थीं.सबसे पहले पंखुरी तनु दीदी के घर पहुँची जो उनकी बेस्ट फ़्रेण्ड भी हैं. तो लीजिये आपकी भी देखिये इस ओकेज़न की फ़ोटोरिपोर्ट---
माथे पर शुभ तिलक...
जय माता दी...

देवी स्वरूपा बिटिया का चरणस्पर्श .....
हाथ में रक्षासूत्र बंधन...

हलवा-पूडी-चना-केला... ओहो ..., इन्ना सारा आउआ (खाना) बिटिया अकेले कैसे खाए ?

केले से शुरू करना ठीक रहेगा... बिटिया इसे खाना भी जानती है....

पंखुरी तनु दीदी के साथ...!

Monday, October 18, 2010

मौसम आया त्योहारों का ... !

पंखुरी बेटी का पिछला हफ़्ता काफ़ी व्यस्त बीता और बेटी की इस व्यस्तता ने घर भर को व्यस्त कर दिया. अरे भई... दुर्गापूजा और नवरात्रि जो थी.त्योहार तो पहले भी आते थे लेकिन इस बार बिटिया के साथ होने ने मानों हमारी खुशियों को और भी सुंदर, मूल्यवान तथा सार्थक बना दिया. सप्तमी के दिन पंखुरी पापा-मम्मी के साथ पूजापंडाल घूमने निकली और आधी रात तक जगमग करते शहर का, मेले का और पंडालों का खूबआनंद लिया.अष्टमी को देवीदर्शन किया, नवमी को भी पूजा की फिर दशमी को सपरिवार दशहरे का मेला भी घूमने गयी और अब बारी है उन सुंदर क्षणों को पंखुरी के सब दोस्तो से बाँटने की... तो लीजिये ये रही अष्टमी की फ़ोटो रिपोर्ट, जब बिटिया तैयार हो कर देवीदर्शन करने पूजापंडाल गयीं--------
हाँलाकि सप्तमी की रात बिटिया ने जगमग करते पूजा पंडालों का खूब आनंद लिया था लेकिन अष्टमी की सुबह फिर देवी प्रतिमा का दर्शन करना उन्हें बहुत अच्छा लगा

या देवि सर्वभूतेषु ; शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै... नमस्तस्यै....
नमस्तस्यै ... , नमोनम: !!!
अब बिटिया के नवमी पूजन की फ़ोटोरिपोर्ट के लिये मिलतें हैं अगले एपिसोड में.........!

Wednesday, October 13, 2010

पंखुरी ने मनाया 10/10/10

पिछला संडे कुछ स्पेशल था ये तो आपको मालूम ही होगा... है न . 
अरे बाबा, उस दिन दस अक्टूबर, सन दो हज़ार दस जो था, 
यानी 10 / 10 / 10 का सुंदर संयोग .दुनिया भर में लोग अपनी-अपनी तरह से इस दिन की व्याख्या कर रहे थे और अपने-अपने तरीके से इसे सबने सेलीब्रेट भी किया. पंखुरी बेटी के लिये भी ये तारीख काफ़ी स्पेशल थी . 
विद्वानों और पंडितों की व्याख्या से परे बिटिया के लिये इस दिन की खासियत ये थी कि ये उसके पापा का जन्मदिन था. थी न सबसे स्पेशल बात ! तो बिटिया ने (मतलब बिटिया की ओर से पापा ने) एक किलो का बढिया वाला पाइनएपल केक मँगवाया. जिस पर पापा और बेटी दोनो का नाम लिखा था. आप भी देखिये-
दरअसल पापा का बड्डे ( बर्थडे ) ,बेटी के बड्डे ( बीस दिसंबर ) की रिहर्सल भी है .पिछ्ली बार अपना पहला केक काटने के पहले पंखुरी ने ये रिहर्सल की थी . इस बार अपने दूसरे जन्मदिन से पहले भी तो ये ज़रूरी थी न .नीचे वाली फोटो में पंखुरी केक पर लगी कैन्डिल बुझाने में पापा की हेल्प करने जा रही है. और हाँ, थोडा बहुत अँधेरा इस लिये है क्योंकि बेटी ने सारी लाइट्स बुझा कर कैन्डिल लाइट पार्टी का इफ़ेक्ट क्रियेट करवाया था... 

Friday, October 8, 2010

पंखुरी ने चाचू की मदद की...

अगर आपको ऐसा लगता है कि पंखुरी बेटी का काम केवल मस्ती करना, शरारत करना और पापा-चाचू की बाइक पर घूमना है तो एकदम गलत... , लीजिये हम अभी आपकी गलतफ़हमी दूर किये देते हैं. पिछ्ले दिनों बेटी ने चाचू की बाइक धोने में खूब मदद की.खास बात ये कि  मदद बिन माँगी थी, बिन माँगे मोती मिले टाइप वाली. गौरतलब है कि सारे घर वाले यानी बडे लोग इस बात के विरोधी थे कि इस काम में बेटी की मदद ली जाए, यहाँ तक कि खुद चाचू भी. इसके लिये बार-बार पंखुरी को मना किया गया और थोडी बहुत (मीठी वाली) डाँट भी पडी. दरअसल सबको बदलते मौसम में  पानी में भीग कर बिटिया की तबीयत खराब होने की चिन्ता जो सता रही थी, लेकिन पंखुरी के आगे किसी की एक न चली जो ठान लिया- सो ठान लिया...
तो लीजिये आप खुद ही देखिये कि बिटिया ने किस ज़ोर-शोर से चाचू के साथ बाइक साफ़ करवाई-